गुरुवार, 31 अगस्त 2017

अचार


वो रास्ता रोके ज़िद पे अड़ी थी,
मैं सामने दरवाजे पे खड़ा था
हाथ पकड़ कर बोली
चलो,,,,, चले आज वहाँ

जहाँ जाया करते थे अक्सर हमतुम,
और खो जाते थे कई कई पहर
एकदूसरे को निहारते हुए हम,
भूल जाते थे इस संसार को
उतार फेकते थे सारा तनाव

जो ऑफिस से घर ले कर आते थे
चलो आज फिर चले, कई दिनों बाद,
ख़त्म हो गया है ख़ुशी का वो राशन-पानी
जो सदा रहता था मेरे पास

बहुत दिनों से तुम को हँसते नहीं देखा,
नहीं देखा बच्चों के साथ बच्चा बनते हुए
और ना ही देखा है मुझे प्यार करते हुए
आओ ना.... फिर चले उस पर्वत के पार

भर लाऊंगी दामन में ढेर सारी खुशियां,
धूप का टुकड़ा औ चाँद सी शीतलता सा प्यार
कुछ ख़ामोशी, कुछ खिलखिलाहटें
औ ढेर सारा एतबार.......

इन सब का डाल कर अचार
रख लुंगी अपने पास.....
और परोस दिया करुँगी तब,
जब तुम दिखोंगे थोड़ा उदास,

जीवन की आपाधापी में, 
मेरा ये चटपटा अचार
हम में भर देंगा खुशियों का संसार
आओ चले हम तुम
उस पर्वत के पार.........

#Geetanjali

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बुधवार, 30 अगस्त 2017



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शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है


लोगों से मैंने खुद की तारीफ को इस तरह सुना है
कि
दिल मेरा शीशे सा साफ है
कोई ऐब नहीं,कोई ऐंठ नहीं
मन पर खुदा के नाम की चादर पाक है
शायद इसलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है।


आँखें मेरी चंचला की दास है
कोई आखेटकी भाव नहीं, क्रुध्ता का स्वभाव नहीं
अश्रुओं पर सँतोषी पिपासा की आस है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है।

होंठ मेरे गुलाब की छांव है
कोई कड़वाहट नहीं,कोई अपशब्द नहीं
वाणी पर सरस्वती का वास है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है।

तन मेरा सलिल का आवास है
कोई मैल नहीं,कोई खिलकोटी खेल नहीं
आत्मा पर सर्वसूरती प्रेम के रंगों का आकाश है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है
शायद इसीलिये अब तक मेरा खाली हाँथ है।

Written By Ritika Preeti Samadhiya.... Please Try To Be A Good Human Being...✍

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shayri



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मंगलवार, 29 अगस्त 2017

शायरी

कुछ यूँ अलग ना हुए हो तुम मुझसे कि
इस तिमिर में भी मुझे तेरा चहेरा साफ दिखाई देता है
तू प्रत्यक्ष नहीं साथ मेरे पर तेरा अश्क मझमें परछाईं लिये हुए बैठा है।
 
Written By Ritika{Preeti} Samadhiya... Please Try To Be A Good Human Being...✍

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रविवार, 27 अगस्त 2017

बादल

बूंद : आँसू , बादल : दिल ,धरती : जीवन , आसमान : दुनिया , सितारे : लोग 

बादलों को समेट , एक बूँद धरती पर आ गिरी, 
बिखेर दी खुश्बू धरती ने , और आसमान से जा मिली 
हवा चहकी, धरती महकी, बादल की सुर सुरीली
पर आसमान की काली हस्ती, पहचान खुद की ना मिली

फिर समेट बूँद को सीने मे, बादल ने गर्जना छोड़ दिया
धरती कैसी, अंबर कैसा, बादल ने जलना छोड़ दिया
दबा दर्द को सीने मे, बादल ने टहलना छोड़ दिया
हवा ठहरी, धरती सहमी, समय ने रास्ता मोड़ दिया

देख दशा ये धरती की, बादल ने फिर शोर किया 
बह गया हर बूँद मे, बस, दर्द सीने मे छोड़ दिया
खोकर खुद को, सीना धरा का सींच दिया
आसमान की काली हस्ती, देख बादल  ने मौन किया

दर्द दबा था सीने मे, बादल ने कुछ गौर किया
हवा बहके, धरती महके, फिर क्यूँ आसमान मे शोर किया
लाखों सितारे हैं आसमान मे, क्यूँ हर एक पर गौर किया
हो खुश्बू मेरे आँगन की, क्यूँ धरा पर ज़ुल्म-ज़ोर किया
आसमान की काली हस्ती, देख बदल ने, दर्द सिने का डोल दिया

सुभाष वर्मा 


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शुक्रवार, 25 अगस्त 2017

अधूरी कहानी


ना बेवफाई हमने की, ना वफा जैसी कोई बात थी
वो मिले ही कुछ ऐसे, कि हमसे हाँ ही ना हो सकी

मोहब्बत तो हमे भी थी, फिर भी ना कह गयी
यही एक मेरी बात,उसे सबसे ज्यादा खल गयी

लाख कोशिशे उसने की, पर मै भी मजबूर थी
अपने क्या उसके भी, आँसू का कारण बन गयी

मेरी ना की वो जिद, उसको बहुत चुभने लगी
मुझसे मेरी पहली मोहब्बत, नफरत करने लगी

वो जो मेरे लिए गालिब, बन जाता था कभी
आज उसी ने तानो की किताब, मेरे नाम लिख दी

उसकी तरह, उसके ही लिए, मै भी जग से लडने को आतुर थी
पर सब खत्म तब हुआ, जब अपनो से लडने की हिम्मत ना कर सकी

अब मिलते तो हम नही, पर मोहब्बत आज भी है वही
घडी की सुई की तरह, दिल मे धड़क रही

ना बेवफाई हमने की, ना वफा जैसी कोई बात थी
वो मिले ही कुछ ऐसे, कि हमसे हाँ ही ना हो सकी

#Anupama_verma

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