बुधवार, 3 मार्च 2021

भला क्या कर लोगे?

 है हर ओर भ्रष्टाचारभला क्या कर लोगे 

तुम कुछ ईमानदारभला क्या कर लोगे ?

 

दूध में मिला है पानी या पानी में मिला दूध

करके खूब सोच-विचार, भला क्या कर लोगे ?

  

ईमान की बात करना नासमझी मानते लोग 

सब बन बैठे समझदारभला क्या कर लोगे ?  

 

विकास की नैया फंसी पड़ी स्वार्थ के भंवर में  

नामुमकिन है बेड़ा पार,भला क्या कर लोगे ?

 

इंसाफ के नाम पर बस तारीख पर तारीख 

है लंबा बहुत इंतजारभला क्या कर लोगे ?

 

फोड़ लोगे  सर अपना मार-मार कर दीवारों पर 

चलोछोड़ोबैठो यारभला क्या कर लोगे ?  


डॉ. शैलेश शुक्ला, दोणिमलै टाउनशिप , बेल्लारी, कर्नाटक 

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औरत का तमाशा

 

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     कहते है वक्त बदलते देर नहीं लगती और वक्त सभी घावों का मरहम होता है। समय जैसे - जैसे बीतता है घाव भी अपने आप भरने लगते है पर कुछ  घाव ठीक तो हो जाते है लेकिन नासूर बनकर हमेशा दिल को कचोटते रहते है। 

      

कुछ ऐसा ही हाल था साधना का। आज साधना गांव की प्रधान बन चुकी थी और खुश थी की उसके बुरे दिन अब अच्छे होने वाले है और शायद उससे भी ज्यादा खुश गांव वाले थे, इसलिए नहीं की साधना प्रधान बन गयी बल्कि इसलिए की अब शायद साधना को उन तमाम दुखों से मुक्ति मिल जाएगी जो उसने सपनों में भी नहीं सोचा था। साधना का नाम अब शायद सार्थक हो जाये क्योंकि उसका अब तक का शादीशुदा जीवन एक तरह की साधना ही था जो कि सारे गांव वाले जानते थे। 


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