गुरुवार, 29 मार्च 2018

लघु कहानी - आत्मबल


         घर के काम काज से निपट कर सुनीता थोड़ा आराम करने के लिए लेटी ही थी कि तभी उसके मोबाइल की घन्टी बजी । सुनीता ने फोन उठाकर देखा तो उसकी सहेली रमा का फोन था । 
         रमा ने बताया अगले सप्ताह साहित्यकारों का तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय आयोजन मुंबई में हो रहा है। अभी - अभी उसका आमंत्रण आया है । लिस्ट में तेरा भी नाम है। आने - जाने का सारा खर्च संस्था ही उठायेगी और मानदेय भी देगी । 
       मैं तो जा रही हूँ। तू भी चलने की तैयारी कर ले । चलेगी न ...। 
       रमा की बात सुनकर , सुनीता निराश हो गई । बुझे मन से बोली - अरे सुनीता । मैं भला कैसे जा सकती हूँ । आज तक कभी स्थानीय आयोजनो के अलावा कहीँ गई नही । एक - दो बार शहर से बाहर गई भी तो सुशील साथ ही गए थे । अब तीन दिन के लिए भला सुशील मेरे साथ कैसे जा सकते हैं । उन्हें छुट्टी ही नही मिलेगी । फिर घर कौन संभालेगा । 
      अरे यार रमा । तू भी कैसी बात करती है । मैं भी तो अकेली जा रही हूँ । मुझे तो मेरे पति कभी मना नही करते । आने जाने से ही सम्पर्क बनते हैं ।

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सोमवार, 26 मार्च 2018

लघु कहानी - पिता का विश्वास

लेखक : देवेन्द्र सोनी

       अपने पिता का अंतिम संस्कार कर लौट रहे सिद्धार्थ की आँखों से अविरल धारा वह रही थी । वह अपने साथ वापस हो रही भीड़ के आगे - आगे चल जरूर रहा था पर उसका मन उसी तेजी से पीछे भाग रहा था।  साथी उसके कंधे पर हाथ रखकर सांत्वना दे रहे थे पर वह जानता था ये आंसू दरअसल उसके मन में चल  रहे प्रायश्चित के आँसू भी हैं । 
      उसे रह रह कर अफ़सोस हो रहा था कि वह अपने पिता के कहे अनुसार क्यों नही चला। क्यों उसने वह सब किया - जिनसे पिता हमेशा दूर रहने के लिए कहते थे । 
       बेचैन मन लिए वह जैसे तैसे थके कदमों से घर पहुंचा पर अब उसे कोई कुछ बोलने वाला नही था । कोई उसे प्यार और निस्वार्थ भाव से समझाने वाला नही था। वह एकांत में जाकर फिर फूट फूट कर रोने लगा ।     उसे लग रहा था कि - हो न हो , उसका विजातीय विवाह ही पिता की मृत्यु का कारण बना है । अभी पिछले महीने ही तो उसने पिता को बताए बिना अपनी मर्जी से मंदिर में शादी की है । एक बार भी उसने पलट कर पिताजी का आशीर्वाद लेना उचित नही समझा और शहर से बाहर चला गया । बिना यह सोचे कि उसके बगैर मां पिताजी का क्या हाल होगा । 

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शुक्रवार, 23 मार्च 2018

सहारे

जरा हटके - नई कविता 

जिंदगी में अक्सर हम 
बिना कुछ सोचे - समझे
छोड़ देते हैं अपना ठिया 
किसी सहारे के बल पर ।

लेकिन जब ये सहारे 
निकलते हैं अंदर से 
बलहीन और खोखले , तो -
दोराहे पर होते हैं हम ।

खुलती है जब तक
आँख हमारी 
खा चुके होते हैं हम धोखा
और खो चुके होतें हैं 
गिरकर , सम्हलने का मौका

बिखरना ही फिर -
बन जाता है नियति ।

इसलिए छोड़ने से पहले
अपना ठिया 
परख जरूर लें - 
मिल रहे सहारे को , कि - 
बनाएंगे ये हमको सशक्त 
या कर देंगे निःशक्त ?

      - देवेंन्द्र सोनी , इटारसी


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बुधवार, 21 मार्च 2018

लघु कथा - ह्रदय परिवर्तन

 लघु कथा  - ह्रदय परिवर्तन


           साठ वर्षीय रमा का ह्रदय उस वक्त परिवर्तित हुआ जब उसकी सहेली शारदा ने फोन पर सूचना दी कि - रमा तेरी इकलौती बेटी सुनीता सरकारी अस्पताल में मौत से जूझ रही है , आधा घण्टे के अंदर ही उसने एक के बाद एक तीन कन्याओं को जन्म दिया है और अब वह खुद खतरे में है। सुनीता की ससुराल वाले उसे अस्पताल में मरने के लिए छोड़ कर चले गए हैं । उन्हें तीन बेटियों के जन्म की कोई खुशी नही है। सुरेश भी बेमन से बस अपना पति धर्म ही निभा रहा है। उसकी आर्थिक स्थिति ठीक नही है। वह उन्हें पालने की स्थिति में नही है। मुझसे पैसे मांग रहा था। मैं अभी अस्पताल से सुनीता को देख कर लौटी हूँ । सुनीता अपने अंतिम समय में बस तुझे ही याद कर रही है , रमा। 
       मेरी मान एक बार मिल आ सुनीता से। तुझे देखते ही शायद वह जी उठे । उसे तेरी मर्जी के खिलाफ शादी करने का बेहद अफ़सोस है। वह माफ़ी मांगना चाहती है तुझसे रमा। क्या अंतिम समय में भी अपनी बेटी को माफ़ नही करेगी - कहकर शारदा ने फोन काट दिया। 

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शुक्रवार, 9 मार्च 2018

ज्ञानी चोर और महकदे


अपनी मंडली के साथ नाच -गाने में मस्त चोरों के सरदार ज्ञानी चोर को अपने ही एक साथी ने कुछ मत्वपूर्ण कार्य की सुचना दी, इशारा पाते ही सभी साथी अपने गुप्त स्थान पर पहुंचे ǀ
-    - क्या बात है जैल सिंह, इतने मायूस ... क्या खबर है ǀ
-    - सरदार ....  मैं पिछले चार दिन से ये सब देख रहा हूँ, रोज संध्या समय नदी किनारे स्नान करते समय मुझे ये तख्ती दिखाई देती है ( तख्ती आगे करते हुए ), पर कुछ समझ नही आया, परन्तु ....
-   -  क्या लिखा है, पढो तो ..... सरदार ने मुछों को ताव देते हुए कहा ǀ 
-   -  लिखा है “ कोई हिन्दू भाई मदद करे, अली महल से आजाद करे: महकदे “ ......... सरदार कोई दुखिया है जो मदद की उम्मीद से हर रोज ये तख्ती लिखती है और पानी में बहा देती है ǀ
-  -   बेचारी है तो दुखिया पर हम इसमें क्या मदद कर सकते हैं, हमें इसे आगे बहा देना चाहिए ताकी सल्तु सुलतान इसे देख सके और मदद कर सके ...... टोली में बेठे एक साथी ने कहा ǀ
-  -   नहीं .... वो हमारी हिन्दू बहन है, हम उसे ऐसे हालत में कैसे छोड़ सकते हैं .... दुसरे ने कहा ǀ
-  -   परन्तु, हजरत सुल्तान अली एक खूंखार राजा है, हम लोग उसका क्या मुकाबला कर सकते हैं, और राजा लोग तो वैसे भी किसी भी महिला को अपने साथ अपनी पटरानी बनाकर रख सकते हैं ǀ .... तीसरे ने कहा
-   -  कोई महिला हमें भाई कहे और अपनी रक्षा की उम्मीद करे, और हम उसे उसके हालात पर छोड़ दें /  हमें उसकी सहायता करनी होगी, किसी भी कीमत पर ..... चोरो के सरदार ज्ञानी ने कहा, मैं कल ही उसकी सहायता के लिए निकलता हूँ ǀ
-   -  मगर सरदार, “राजा के महल सु हम कीमती हीरा चुरा सकत है पर इ .... महकदे ” .... पान चबाते हुए टोली के एक अन्य सदस्य ने कहा ǀ
-    - लोग मुझे ज्ञानी चोर कहते हैं, जो चाँद की चांदनी भी चुरा सकता है ..... सरदार ने मुछों पर ताव देते हुए कहा ǀ
सब लोग अपने अपने कक्ष में चले गये ǀ
अहमद पुर सल्तनत यहाँ से 70 कोस दूर पश्चिम में है, रस्ते में घना जंगल, पैदल का रास्ता भी दो दिन का है, खैर जाना तो है ही ǀ
रात के सन्नाटे में बार - बार किसी धवनि को सुनने की कोशिश में कान लगाये सरदार कुछ सोचने में वय्सत थे ǀ
दूर- दूर तक ज्ञानी चोर के चर्चे थे, अगर किसी कीमती चीज पर नजर रखी जाती तो सिर्फ इसलिए की कहीं ज्ञानी चोर को पसंद न आ जाये, वो चीजों को सिर्फ पसंद नहीं करता बल्कि अधिकार करता था, चाहता नहीं पाता था, भगवान से मांगता नहीं बल्कि समर्पित करता था ǀ
अगली सुबह सरदार विधिवत अपने कार्य के लिए निकल पड़े, गले में मालाओं का ढेर, हाथ में कमंडल, बड़ी - बड़ी दाड़ी, हाथ में लाठी, कंधे पर झोला, साधू के भेस में पश्चिम की और बढ़े जा रहे थे, जहाँ भी जाते, “जय श्री राम” नाम के साथ लोगों से मुलाकात होती, लोग अपना दुःख सुनाते, अपने झोले से कुछ मोती, कीमती जवारात निकाल जरूरत मंद को देते, उन्हें कुछ उपदेश देते और आगे बढ़ जाते ǀ
घने जंगल ने गुजरते गुजरते थक चुके थे, कहीं विश्राम करने की जगह तलाश रहे थे की सामने एक झोंपड़ी दिखाई दि, पास गये तो देखा की दो साधू झगड़ रहे थे ...... तीसरे साधू को देख झेप गये ǀ
-    - गुरु की अनुपस्थिति में आपस में झगड़ना आप ज्ञानी मानुसों को शोभा नहीं देता ǀ
-    - माफ़ करें .... कुछ दिन पहले ही हमारे गुरु सवर्ग सिधार गये .. हम दोनों बस सम्पति के बंटवारे के लिए झगड़ रहे थे ǀ
-    - तुम दोनों आपस में बाँट क्यूँ नही लेते, इतने बड़े ज्ञानी, इतनी मोह माया ..... मेरा यहाँ क्या स्थान .... मुझे जाना चाहिए ..  
-    -  नहीं - नहीं महाराज, हमें माफ़ करें .... आप समझदार है ...आप ही हमारा बंटवारा कीजिये न ǀ
-    -  क्या तुम दोनों को मेरे बंटवारे की सर्त मंजूर होगी ?
-    -  हाँ महाराज ..... दोनों एक साथ बोल उठे ǀ
-   -   ठीक है, जो भी कीमती चीजें तुम्हारे पास है वो सुब मेरे सामने रखो ǀ
-    -  कीमती चीजों में हमारे पास सिर्फ ये तीन चीजें हैं .... एक ने सामने रखते हुए कहा ǀ
-    - ठीक - ठीक बंटवारे के लिए मुझे जानना होगा की इनकी क्या क्या खासियत है, कोन सी वस्तु कितनी अहम् है
-   -   जी महाराज, मैं बताता हूँ ǀ

  • महाराज ये “लाल गुदड़ी” है, कोई भी मनुस्य इसे ओढ़ कर अदृस्य हो सकता है ǀ
  • ये “दोसेर जड़ी’ है, जिसे दोनों तरफ से अलग अलग प्रयोग किया जाता है, इधर से पानी में मिलाकर पीने से कोई भी मनुस्य जानवर बन जाता है और इधर से प्रयोग करने पर फिर से मनुस्य बन जाता है ǀ
  • और ये “केसरिया चादर “ जिस पर बैठ कर कोई भी हवा में उड़ कर किसी भी स्थान पर पहुंच सकता है ǀ

-   -  सुन्दर अति सुन्दर .... आपके गुरु अवस्य ही एक महान ज्ञानी थे, तीनों चीजें अपने अपने महत्व अनुसार बराबर हैं और किसी भी एक के दो हिस्से नहीं किये जा सकते, इसलिए मेरा निर्णय है किसी एक को दो चीजें दि जाये व् दुसरे को सिर्फ एक ǀ
-    - विचार अच्छा है महाराज, मैं पुराना शिष्य हूँ,  इसलिए मुझे दो चीजें लेने का हक है ...एक ने बड़े ही विनम्र भाव से कहा ǀ
-   -  महराज, क्या बड़े होना ही ज्ञान की परिभासा हैं, मैं मेरे गुरु का प्रिय शिष्य था, इसलिए ......
-    - अगर ऐसा है तो मुझे तुम्हारी परीक्षा लेने होगी,
धनुश उठाया और एक तीर उतर दिशा में और दूसरा पश्चिम दिशा में छोड़ा, तुम दोनों में से जो भी इस तीर को पहले लेकर आएगा उसे दो चीजें मिलेगी और दुसरे को सिर्फ एक ... क्या मंजूर है
दोनों हाँ कहकर दोनों तरफ भागे। 

ज्ञानी चोर, एक चोर था, लोग उसके ज्ञान और चालकी का बखान करते थे, परन्तु इस समय वो एक साधू था। 
            ..... जारी   



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