शनिवार, 16 सितंबर 2017

#माँ


बहुत दुखद है माँ....
तेरी इच्छाओं का मर जाना
इमारत बनाने के लिए
खुद का नींव बन जाना
स्वयं अपने पंख नोंच के 
उन्हें बच्चों को पहनाना
बड़ी बड़ी जरूरतों को हमसे
छिपा के हंसी में छुपाना
बहुत दुखद है माँ....
तेरा आँसू पी जाना
लीपते आँगन में हाथ की 
लकीरो का मिट जाना
चूल्हे की आग में सपनों का
राख हो जाना
हर दर्द को नियति मान कर
तेरा उसे गले लगाना
और फिर मेरी मोहक
मुस्कान में अपनी सारी
तकलीफ़ भूल जाना
बहुत कठिन है माँ.....
तेरा माँ बन जाना
धुँए की ओट में 
तेरा अश्रुओं को छिपाना
प्यार के दो बोल के लिए
पूरा जीवन न्यौछावर कर जाना
घर को घर बनाने के बाद भी 
वो तेरा घर ना कहलाना
बचपन का आँगन छोड़
अनजाने आँगन में बस जाना
बहुत दुखद है माँ....
तेरा पल में जीवन बदल जाना
शिक्षित बच्चों के सामने
खुद का गँवार बन जाना
हर झिड़की पर भी होंठो से
भर भर आशीष देती जाना
आख़री साँस तक बच्चों पर
भरपूर ममता बरसाना
सबकी आँखो में अपने लिए
थोडा सम्मान तलाशना
बहुत दुखद है माँ......
तेरी ममता को ना पहचानना
सब कुछ खो कर भी 
कुछ ना हाथ में आना
सब कुछ दे कर भी
खाली हाथ चले जाना
बहुत दुखद है माँ........
तेरी इच्छाओं का मर जाना........

By: Geetanjali Girwal



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गुरुवार, 14 सितंबर 2017

हिन्दी दिवस



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सोमवार, 11 सितंबर 2017

जिंदगी



जिंदगी रुला मत
चार दिन के मेहमान है हम
मामूली से इंसान 
तेरे कर्जदार है हम

पा लेने दे अब मंजिल 
इक और एहसान कर
इतना भी मत दौडा
कि चल भी ना पाए हम

मंजिल को इंतजार है
राह से मत भटकाना अब
राही भी बेकरार है
अब और खेल रचाना मत

आधी से ज्यादा जिंदगी
तेरे खेलो मे उलझो रहे हम
अब थोडी सी बची है
तू उसको ना बर्बाद कर

सांसो की डोर जो टूट गयी
फिर जिंदगी तू भी वीरान है
मत भूल तमाशा बनाने को
तुझे भी इन्सानो की तलाश है

 ~ Anupama

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रविवार, 3 सितंबर 2017

किस्मत बेगुनाह है



महज ख्वाब ना देखा कर
बेशक आगे थोडा धीरे चल
उम्मीद दूसरो से रख कर
दीवानो वाला हाल ना कर
गर हारा भी है तू चलकर
कहाँ कमी रह गयी पता कर
यूँ पागलपन की हद मत कर
किस्मत बेगुनाह है शक मत कर

मंजिल को जाती दिशा पकड
यहाँ कांटे है पांव संभल कर रख
फिर गिरे जब ठोकर खाकर
खूद ही अपना तू हौसला बन
गर संभल ना पाया तू गिर कर
कहाँ कमी रह गयी पता कर
यूँ पागलपन की हद मत कर
किस्मत बेगुनाह है शक मत कर

कोरा कागज मानकर चल
क्या लिखना है फिर निश्चित कर
तुझे सपने दे कोई और आकर 
तू उससे पहले ही बुनकर रख
गर ना हुआ पूरा फिर कोशिश पर
कहाँ कमी रह गयी पता कर
यूँ पागलपन की हद मत कर
किस्मत बेगुनाह है शक मत कर

 #Anupama_verma

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"माँ" "

लेती नहीं दवाई "माँ",
जोड़े पाई-पाई "माँ"।

दुःख थे पर्वत, राई "माँ",
हारी नहीं लड़ाई "माँ"।


इस दुनियां में सब मैले हैं,
किस दुनियां से आई "माँ"।

दुनिया के सब रिश्ते ठंडे,
गरमागर्म रजाई "माँ" ।


जब भी कोई रिश्ता उधड़े,
करती है तुरपाई "माँ" ।

बाबू जी तनख़ा लाये बस,
लेकिन बरक़त लाई "माँ"।


बाबूजी थे सख्त मगर ,
माखन और मलाई "माँ"।

बाबूजी के पाँव दबा कर
सब तीरथ हो आई "माँ"।


नाम सभी हैं गुड़ से मीठे,
मां जी, मैया, माई, "माँ" ।

सभी साड़ियाँ छीज गई थीं,
मगर नहीं कह पाई  "माँ"


घर में चूल्हे मत बाँटो रे,
देती रही दुहाई "माँ"।

बाबूजी बीमार पड़े जब,
साथ-साथ मुरझाई "माँ" ।


रोती है लेकिन छुप-छुप कर,
बड़े सब्र की जाई "माँ"।

लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,
रह गई एक तिहाई "माँ" ।


बेटी रहे ससुराल में खुश,
सब ज़ेवर दे आई "माँ"।

"माँ" से घर, घर लगता है,
घर में घुली, समाई "माँ" ।


बेटे की कुर्सी है ऊँची,
पर उसकी ऊँचाई "माँ" ।

दर्द बड़ा हो या छोटा हो,
याद हमेशा आई "माँ"।


घर के शगुन सभी "माँ" से,
है घर की शहनाई "माँ"।

सभी पराये हो जाते हैं,
होती नहीं पराई मां! 

Deepika

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