जिंदगी रुला मत
चार दिन के मेहमान है हम
मामूली से इंसान
तेरे कर्जदार है हम
पा लेने दे अब मंजिल
इक और एहसान कर
इतना भी मत दौडा
कि चल भी ना पाए हम
मंजिल को इंतजार है
राह से मत भटकाना अब
राही भी बेकरार है
अब और खेल रचाना मत
आधी से ज्यादा जिंदगी
तेरे खेलो मे उलझो रहे हम
अब थोडी सी बची है
तू उसको ना बर्बाद कर
सांसो की डोर जो टूट गयी
फिर जिंदगी तू भी वीरान है
मत भूल तमाशा बनाने को
तुझे भी इन्सानो की तलाश है
~ Anupama
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