सोमवार, 11 सितंबर 2017

जिंदगी



जिंदगी रुला मत
चार दिन के मेहमान है हम
मामूली से इंसान 
तेरे कर्जदार है हम

पा लेने दे अब मंजिल 
इक और एहसान कर
इतना भी मत दौडा
कि चल भी ना पाए हम

मंजिल को इंतजार है
राह से मत भटकाना अब
राही भी बेकरार है
अब और खेल रचाना मत

आधी से ज्यादा जिंदगी
तेरे खेलो मे उलझो रहे हम
अब थोडी सी बची है
तू उसको ना बर्बाद कर

सांसो की डोर जो टूट गयी
फिर जिंदगी तू भी वीरान है
मत भूल तमाशा बनाने को
तुझे भी इन्सानो की तलाश है

 ~ Anupama

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