धरती कितना कुछ देती है
अन्न
जल
हवा
पानी
और हम
धरती को
काटते है
खोदते है
सीना कर देते है छलनी
पर
फिर भी वो मुस्कराती है
बिल्कुल
माँ की तरह
जिसकी छाती से पी जाते है
हम खून का कतरा- कतरा
बिल्कुल दूध की तरह
फिर भी
धरती
हँसती है , मुस्कराती है
अपनी
अस्थि मज्जा तक खिलाती है
बिल्कुल माँ की तरह ।
अरविन्द कुमार मौर्य
हिंदी विभाग
कुमाऊँ विश्वविद्यालय
नैनीताल , उत्तराखंड
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