सोमवार, 27 अप्रैल 2020

धरती और माँ


धरती कितना कुछ देती है 
अन्न
जल
हवा
पानी
और हम 

धरती को 
काटते है 
खोदते है 
सीना कर देते है छलनी 
पर 

फिर भी वो मुस्कराती है 
बिल्कुल 
माँ की तरह 
जिसकी छाती से पी जाते है 
हम खून  का कतरा- कतरा
बिल्कुल दूध  की तरह 
फिर भी 

धरती 
हँसती है , मुस्कराती है 
अपनी
अस्थि मज्जा तक खिलाती है 
बिल्कुल माँ की तरह ।

      अरविन्द कुमार मौर्य 
         हिंदी विभाग 
        कुमाऊँ विश्वविद्यालय 
      नैनीताल , उत्तराखंड

Hit Like If You Like The Post.....


Share On Google.....

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

कोरोना: एक आर्थिक छद्म विश्वयुद्ध




आज, जहां पूरी दुनिया महामारी की आग में झुलस रही है , वहीं चीन, जो इस महामारी का कारक है ,  महाशक्ति बनने के सपने देख रहा है। उसके इस सपने की कीमत पूरी दुनिया चूका रहा है।
क्या यह एक छद्म विश्व युद्ध का हिस्सा है ?
हाल ही में #Amazon द्वारा प्रकासित किताब कोरोना: एक आर्थिक छद्म विश्वयुद्ध में जानिए इससे जुडी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी व् डरवाना सच !

कोरोना: एक आर्थिक छद्म विश्व युद्ध (Hindi Edition) Kindle Edition


publisher: Amazon Publication
available only on Amazon.

Hit Like If You Like The Post.....


Share On Google.....

मजहबी भूख




वसंत अपने समापन की ओर था, वृक्षों पर नए पत्तों ने नव जीवन धारण कर लिया था। प्रकृति खूब खिलखिला रही थी। उसके खिलखिलाने और ऐसा लगने के पीछे एक कारण यह भी था की इंसान मजबूर होकर घरों में कैद था। दूसरा यह की आधुनिक संसाधनों के बीच इंसान प्रकृति की उस सुंदरता और अपनेपन को महसूस कर रहा था। ठीक उसी तरह जैसे एक अबोध बालक कोई संकट भांपकर अपनी माँ की गोद में छुप जाता है।
कृष्ण चंद्र ठाकुर घर के आंगन में अकेले बैठे ऊंघ रहे थे। नीम के पेड़ की गहरी छाया और शीतल हवाओं का यह आनंद उन्हें बरसों बाद प्राप्त हुआ था। पैसे की दौड़ - धुप में सब कुछ पीछे छूट गया था, अब यह आनंद पाकर वह कहीं जाना नहीं चाहते थे।
घर के ठीक सामने एक और मकान था, जिसमे उस्मान मियां रहते थे। वाराणसी में लंका मार्किट में उनकी किराने की दुकान थी। आजकल छुआछूत की बीमारी के कारण दुकान न जा पाते थे।दिल में सेवाभाव था और घर खाली बैठे मन न लगता था इसलिए वे किसी सामाजिक संगठन के साथ मिलकर जरूरत मंद लोगों की सहायता करने चले जाया करते थे।
सुबह - सुबह मियां ने ठाकुर को पुकारा, “क्या कहते हो ठाकुर , चलो कुछ धर्म पुण्य तुम भी कमा लो “

Hit Like If You Like The Post.....


Share On Google.....

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

क्या आप विचारशील पाठक हैं ? पढ़ें .......





ये वो समय है जब आप अपने सारे कार्यों, चिंताओं से दूर रहकर वह कर सकते हैं जो आप जीवन में करना चाहते हैं।

"इस लॉक डाउन के बाद अगर आप पहले से  बेहतर होकर बाहर नहीं निकलते हैं तो इसका मलतब होगा की आपके पास अनुशासन की कमी है , समय की नहीं।": सारथी  

    एक  अनुशासन हीन मनुष्य को उतना ही मिलता है जितना की अनुशासित मनुष्य छोड़ता है। अनुशासन के साथ जीवन के बढ़ते क्रम में "किताबें", आपके दिमाग को विकसित करने का सबसे बेहतरीन तरीका होता है।

चलिए। .....  यहां है कुछ बेहतरीन किताबें हैं जो आप इस समय अपने मोबाइल , लैपटॉप या टैब पर घर बैठे पढ़ सकते हैं।


दस्तावेज़ : मूल्य : 125 
        हिंदी साहित्य के इतिहास निर्माता पूर्वज साहित्यकारों पर समय-समय पर लिखे गए मेरे आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह है। हिंदी साहित्य में कई महान साहित्यकार हैं जिन्हें इन निबंधों में याद किया गया है। इनके अनुभव एवं ज्ञान की खोज खबर मैंने की है। पूर्वज साहित्यकारों की संचित ज्ञान-राशि आज हिंदी साहित्य का अमूल्य धरोहर है।

कोरोना: एक आर्थिक छद्म विश्व युद्ध (Hindi Edition): मूल्य : ₹59 


    अगर आप कोरोना से जुडी जानकारियाँ और जुड़े कुछ खतरनाक पहलुओं के बारे में जानना चाहते हैं तो ये आपके लिए एक बेहतरीन किताब होगी जो आपको आश्चर्यचकित करे देगी। 
    इसमें लेखक, चीन की आगामी रणनीति के बारे में आगाह करता है, जिसके दम पर चीन विश्व क्र्म में खुद को स्थापित करने के सपने देख  रहा है। 

रागदरबारी : मूल्य : 163
    रागदरबारी जैसे कालजयी उपन्यास के रचयिता श्रीलाल शुक्ल हिंदी के वरिष्ठ और विशिष्ट कथाकार हैं। उनकी कलम जिस निस्संग व्यंग्यात्मकता से समकालीन सामाजिक यथार्थ को परत-दर-परत उघाड़ती रही है, पहला पड़ाव उसे और अधिक ऊँचाई सौंपता है। श्रीलाल शुक्ल ने अपने इस नए उपन्यास को राज-मजदूरों, मिस्त्रियों, ठेकेदारों, इंजीनियरों और शिक्षित बेरोजगारों के जीवन पर केेंद्रित किया है और उन्हें एक सूत्र में पिरोए रखने के लिए एक दिलचस्प कथाफलक की रचना की है।

कीकर और कमेड़ी : मूल्य :99 
    कीकर और कमेड़ी’ सात कहानियों का संग्रह है। हर कहानी अपने आप में एक दुनिया है। इस दुनिया में समलैंगिकता जैसा संवेदनशील मुद्दा भी है और मानव मन की जटिल ऊहापोह भी। लेखिका की सहज और बेबाक अभिव्यक्ति इस किताब को और भी ख़ास बनाती है। पात्रों के दुःख, सुख, उनकी उदासियाँ, उनका प्रेम पाठकों को परिचित सा लगता है।

अलबेला : 79  
    प्रकृति का एक नियम है कि जब भी कोई परिवर्तन होता है, तो इसका असर, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सब पर पड़ता है।
हिमयुग में, जब बर्फ पिघल कर, प्रकृति का नया रूप दिखा रही थी, तब मनुष्य के दिमाग की सोयी परतें भी एक-एक कर खुलने लगी।
ये कहानी आदियुग के उसी चरण की अनकही दास्तान है, जिसकी हर घटना के साथ, समय भी अपनी करवट बदलता रहा।
आदिकाल के मनुष्य ने अब जवाब तलाशनें शुरू किये, अपने मस्तिष्क में उफनते अजीबो-गरीब सवालों के।


कोई अन्य किताब जो अपने पढ़ी है और आप अन्य पाठकों को पढ़ने की सिफारिश करते हैं तो हमें कमेंट में बताएं। 





Hit Like If You Like The Post.....


Share On Google.....

ब्लॉग आर्काइव

Popular Posts