शनिवार, 13 जनवरी 2018

शीर्ष 10 नए हिंदी उपन्यास

#1  बनारस टॉकीज 



बनारस टॉकीज़ साल 2015 का सबसे ज़्यादा चर्चित हिंदी उपन्यास है। साल 2016 और 2017 में भी ख़ूब पढ़े जाने का बल बनाए हुए है। सत्य व्यास का लिखा यह उपन्यास काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के छात्रावासीय जीवन का जो रेखाचित्र खींचता है वो हिंदी उपन्यास लेखन में पहले कभी देखने को नहीं मिला। इस किताब की भाषा में वही औघड़पन तथा बनरासपन है जो इस शहर के जीवन में। सत्य व्यास 'नई वाली हिंदी’ के सर्वाधिक लोकप्रिय लेखक हैं।

#2 दिल्ली दरबार 



दिल्ली दरबार छोटे शहरों के युवाओं के दिल्ली प्रवास, प्रेम, प्रयास और परेशानियों की एक प्रहसनात्मक कहानी है। यह लापरवाह इश्क से जिम्मेदार प्रेम की परिणति तक की एक खुशहाल यात्रा है। यह कहानी दरअसल उन लाखों युवाओं के जीवनशैली की भी है जो बेहतर जिंदगी और भविष्य की संभावनाओं के लिए दिल्ली जैसे महानगर का रास्ता लेते हैं। मनोरंजक ढंग से कही गई इस कहानी के केंद्र में टेक्नो गीक 'राहुल मिश्रा' है; जिसका मंत्र है 'सफलता का हमेशा एक छोटा रास्ता है' और विडंबना यह है कि वह इस बात को अपने ही सनकी तरीके से सही साबित भी करता जाता है।कहानी परिधि की भी है जो पूर्वी दिल्ली की एक ठेठ लड़की है और राहुल को लेकर भविष्य तलाश रही है। मूलतः ‘दिल्ली दरबार’ दिल्ली की नहीं, बल्कि दिल्ली में कहानी है जो चलते-चलते प्रेम, विश्वास, दोस्ती और 'जीवन' के अर्थ खोजती जाती है।

#3 मसाला चाय 



Lekhak: Divya Prakash Dubey 

मसाला चाय’ की कहानियाँ आपकी ज़िन्दगी जैसी हैं। कभी थोड़ा ख़ुश, कभी थोड़ा उदास तो कभी दोस्तों के साथ ख़ुशियों जैसे तो कभी सबसे नज़र बचाकर आँसू बहाती हुईं। मसाला चाय को पढ़ना ऐसे ही है जैसे अपने कॉलेज की कैंटीन में सालों बाद जाकर दोस्तों के साथ चाय पीते हुए गप्पे मारना। अगर आप हिन्दी पढ़ना शुरू करना चाहते हैं तो यह किताब आपकी पहली किताब हो सकती है। बिल्कुल बोलचाल की भाषा में लिखी हुई किताब। आपको पढ़ते हुए ऐसा लगेगा जैसे लेखक जैसे लेखक कहानियाँ पढ़कर सुना रहा है। वैधानिक चेतावनी: मसाला चाय जिसको अच्छी लगती है उसको उसको बहुत अच्छी लगती है जिसको बुरी उसको बहुत बुरी।

#4 यूपी 65 




बेस्ट सेलिंग किताबों ‘नमक स्वादानुसार’ और ‘ज़िंदगी आइस पाइस’ के लेखक निखिल सचान का पहला उपन्यास। उपन्यास की पृष्ठभूमि में आइआइटी बीएचयू (IIT BHU) और बनारस है, वहाँ की मस्ती है, बीएचयू के विद्यार्थी, अध्यापक और उनका औघड़पन है। समकालीन परिवेश में बुनी कथा एक इंजीनियर के इश्क़, शिक्षा-व्यवस्था से उसके मोहभंग और अपनी राह ख़ुद बनाने का ताना-बाना बुनती है। यह हिंदी में बिलकुल नये तेवर का उपन्यास है, जो आपको अपनी ज़िंदगी के सबसे सुंदर सालों में वापस ले जाएगा, आपको आपके भीतर के बनारस से मिलाएगा। इस उम्मीद में कि बनारस हम सबके भीतर बना रहे, हम अलमस्त, औघड़ रहें और बे-इंतहा हँस सकें।

#5 नमक स्वादानुसार 


नमक स्वदंसुष बचपन की कल्पनाओं से लेकर मानव अस्तित्व के अंधेरे की खोज करने वाली कहानियों का संग्रह, कहानियां जो आपको उदासीन कर देगा, वह आपकी कहानी बताएगा, जो आपको और उनको झटका देगा, जो आपको अपने पसंदीदा स्थानों पर ले जाएगा।

#6 जिंदगी आस पास 



लघु कथा संग्रह, निखिल की दूसरी पुस्तक है, जिसने अपनी पहली पुस्तक 'नमक स्वदानुसार' की उल्लेखनीय सफलता के बाद किया है। इस पुस्तक में, निखिल अपने पाठकों को एक ऐसी यात्रा के लिए ले जा रही है जो बुनियादी मानव अस्तित्व की पहेलियों को हल करने की कोशिश करता है

#7 बनारस वाला इश्क़ 



किताब 'बनारस वाला इश्क' दो अलग-अलग विचारधाराओं से आ रही एक जोड़ी के बारे में है- जयश्री राम और लाल सलाम। लेखक महाविद्यालय की राजनीति के चारों ओर की कहानी और प्रेम के साथ-साथ कष्टों में खिलते हैं। मुख्य पात्रों के माध्यम से बबून मिश्रा बिहार के गया जिला और उना ठाकुरैन बैठक के आसपास बनारस के सोनल सिंह से टकराव और जुदाई दिखाए गए हैं। कहानी के लेखक प्रभात बांधतल्या बिहार से हैं और किताब, इसलिए, बिहारी माटी को प्रतिबिंबित करती है।

#8 बकर पुराण 



'बकर पुराण' उन सभी स्नातक लड़कों का एक आधुनिक दिन है जो अपने घरों को बेहतर भविष्य की अपेक्षा के लिए छोड़ देते हैं और बंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में रहते हैं, केवल शहरों को अपने घर बनाने के लिए। यह किताब उन सभी लोगों को समर्पित है, जो एक बार प्यार में गिर गईं, बेवकूफ काम करती हैं और पड़ोस के चाय-स्टालों पर चाय के कप पर देश के विदेशी मामलों पर चर्चा करने में कभी नाकाम रही हैं। स्पष्ट और सटीक शब्दों में लिखा हुआ और फैंसी नहीं, यह पुस्तक पिछले, भविष्य और इस स्नातक की उपस्थिति पर प्रकाश डाला जाता है जिसका जीवन हमेशा के लिए समान होगा।

#9 डोमनिक की वापसी 



विवेक मिश्र के इस उपन्यास के केंद्र में एक नाटक है- 'डॉमनिक की वापसी'। इस नाटक के मुख्य किरदार 'डॉमनिक' की भूमिका निभाने वाला अभिनेता है दीपांश जो नियति और यथार्थ के बीच झूलता अपना सफ़र तय करता आगे बढ़ता है और उस समय रंगमंच की दुनिया छोड़ कर दृश्य से गायब हो जाता है जब एक अभिनेता के रूप में वह वो मक़ाम हासिल कर चुका होता है जो उस दुनिया किसी भी कलाकार के लिए एक सपना होता है। यह उपन्यास जीवन में अभिनय और अभिनय में जीवन के दो किनारों के बीच अतीत, वर्तमान और भविष्य के कई किस्सों में झांकता हुआ आगे बढ़ता है। कथानक में प्रेम पर केंद्रित नाटक सफल होता है पर नाटक के बाहर जीवन में प्रेम छीजता और चुकता जाता है। विवेक मिश्र के लेखन में सघन जीवनानुभव, पुख्ता अध्यन और विषय में गहरी संलग्नता स्पष्ट दिखाई देती है। यह उपन्यास भी प्रेम, मानवीय संबंध, कला और जीवन को समझता, समझाता आगे बढ़ता है। उपन्यास न केवल अपने कथानक में अनूठा है बल्कि भाषा, शैली और कहन के भी कई प्रयोगों के अपने में समेटे एक नए प्रकार का शिल्प गढ़ता दिखाई देता है। यह उपन्यास न केवल हमें वर्तमान लेखन के प्रति आश्वस्त करता है बल्कि भविष्य के लिए एक उम्मीद भी जगाता है। विवेक की ही भाषा में कहें तो 'अच्छे समय में कलाएं हममें और बुरे समय में हम कलाओं में जीते हैं'। यह उपन्यास निर्णायकों द्वारा देश भर से 50से ऊपर आई पांडुलिपियों में से एक 'आर्य स्मृति सम्मान' के लिए चुना गया है। आशा है यह न केवल विवेक मिश्र के लेखन में बल्कि हिंदी उपन्यास विधा में भी एक मील का पत्थर साबित होगा।

#10 मुसाफिर कैफ़े 



हम सभी की जिंदगी में एक लिस्ट होती है। हमारे सपनों की लिस्ट, छोटी-मोटी खुशियों की लिस्ट। सुधा की जिंदगी में भी एक ऐसी ही लिस्ट थी। हम सभी अपनी सपनों की लिस्ट को पूरा करते-करते लाइफ गुज़ार देते हैं। जब सुधा अपनी लिस्ट पूरी करते हुए लाइफ़ की तरफ़ पहुँच रही थी तब तक चंदर 30 साल का होने तक वो सबकुछ कर चुका था जो कर लेना चाहिए था। तीन बार प्यार कर चुका था, एक बार वो सच्चा वाला, एक बार टाइम पास वाला और एक बार लिव-इन वाला। वो एक पर्फेक्ट लाइफ चाहता था।

मुसाफिर Cafe कहानी है सुधा की, चंदर की, उन सारे लोगों की जो अपनी विश लिस्ट पूरी करते हुए perfect लाइफ खोजने के लिए भटक रहे हैं।



पढ़िए : सर्वश्रेष्ठ 5 प्रेरणादायक किताबे जो आपकी जिंदगी को बदल देगी


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सर्वश्रेष्ठ 5 प्रेरणादायक किताबे जो आपकी जिंदगी को बदल देगी

#  1 अपनी एकाग्रता कैसे बढ़ाएं 
प्राचीनकाल से ही भारतीय शैक्षिक प्रक्रियाओं में एकाग्रता-विकास को बहुत महत्त्व दिया गया। आश्रमों में आचार्य अपने शिष्यों को विविध योगाभ्यासों के जरिए एकाग्रता के गुर सिखाते थे। आधुनिक शिक्षा-प्रणाली में एकाग्रता-विकास के इस महत्त्वपूर्ण पक्ष की पूरी तरह से उपेक्षा कर दी गई है। हमने बच्चों के ऊपर सूचनाओं का बोझ बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
   
Lekhak: Vijay Prakash
नतीजतन बच्चों की उपलब्धि का स्तर नीचे आ गया है और वे महज रट्टू तोते बनकर रह गए हें। यदि हमें रटंत विद्या को छोड़कर सृजनवादी शिक्षा को प्रोत्साहित करना है तो यह आवश्यक है कि हम नवाचारी ढंग से सोचें। एकाग्रता-विकास में ही सृजनवादी शिक्षा की कुंजी है। बिना एकाग्रता के हम किसी कार्य में सफल नहीं हो सकते।

#2  विचारों की शक्ति और सफलता 


      लेखक: सत्य नारायण & R.K.Mittal (Retired I.A.S.)

#3  मेरी किताब मेरी दोस्त 

     लेखक : Sharma Vidushi

यह किताब आपको सफ़लता पाने के कोई जादुई मंत्रा नहीं बताती, ना ही यह किताब आपके जीवन की सब परेशानियों को हल करने का दावा करती है। लेकिन आप इस पुस्तक के पन्नों में एक सच्चा दोस्त पाएँगें, एक ऐसा दोस्त जो आप की मुश्किलें समझता है तथा उन मुश्किलों को हल करने के लिए आप को प्रेरित भी करता है, और सलाह भी देता है।

# 4 सफलता के कदम कैसे लें ?

     लेखक : Rakesh Nath 


# 5 ऊँची उड़ान ही लक्ष्य है 

यदि ऊँची उड़ान आपका लक्ष्य है तो अपनी योजना में शामिल करिए— हौसला, पंख और आँखें। हौसला, जो आपको ऊँची-से-ऊँची उड़ान भरने के लिए प्रेरित करे; पंख, जो आपको थकने न दे; आँखें, जिनमें तड़प हो नए आकाश को देखने की! ऊँची उड़ान का आनंद वही ले सकता है, जिसने किसी जगह विशेष को लक्ष्य बनाने की बजाय ऊँची उड़ान को ही लक्ष्य बना लिया है।

     लेखक: Dilip Trivedi, Shivendra Singh

 यदि लक्ष्य की प्राप्ति एक सुखद क्षण है, तो ऊँची उड़ान को लक्ष्य बनानेवाले पंखों को हर क्षण एक सुखद अनुभूति हो रही है। खुला आसमान, चौड़े पंख और लक्ष्य पर नजर रखते हुए हर पल लक्ष्य प्राप्ति सुखानुभूति की पराकाष्ठा है। लक्ष्य को प्राप्त करना तो वास्तव में एक क्षण की उपलब्धि है, लेकिन इसको प्राप्त करने की यात्रा हर क्षण एक उपलब्धि है। यह जीवन को सकारात्मक नजरिए से देखने की एक बानगी मात्र है, जिसे स्वीकार करते ही आप ऊँची उड़ान के रास्ते में आनेवाली हर बाधा से नई ऊर्जा प्राप्त करेंगे और सारी नकारात्मकता बहुत पीछे छूट जाएगी; शेष बचेगा— उत्साह, शांति और लगातार मिलनेवाला सृजनात्मक संतोष!



हमें लगातार अपनी असफलता और गलतियों से सीखते रहना चाहिये।
तभी हम जीवन में अपने लक्ष्य को हासिल कर सफलता की तरफ कदम बढ़ा सकते है।

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अधुरापन



जिंदगी में एक अधूरापन तब आता है जब हमें ये कहने का बहाना मिलता है की "मुझे तो मौका ही नहीं मिला" और फिर उन अधूरे सपनों को किसी ऐसे पर थोप दिया जाता है जिससे हमें बहुत उमीदें हो. ...... उसके सपनों को बिना जाने , बिना पहचाने ..उसकी जिंदगी में भी एक नया अधूरापन भर देते हैं।

सुधरे हुए समाज में रहने का दावा करने वाले संजीव श्रीवास्तव की बेटी ने जब 12 वी पास की, तो वो उमीदों का पहाड़ सर पर उठाए, जमीं पर पैर नहीं रख रहे थे।

- ये लो पिताजी, मिठाई खाओ, आपकी पोती ने टॉप किया है..... संजीव ने अपने पिता से खुश होते हुए कहा
- हाँ, बेटी ब्याहने लायक हो गयी है न अब तो .....हमेशा खामोश रहने वाले आरती के दादा जी ने अपनी जुबान से भयंकर बाण छोड़ते हुए कहा।
- अरे पिताजी, आरती ने 94% के साथ पुरे जिले में सबसे आगे रही है।
शाबाश  शाबाश .....  दादा जी ने हाँ में हाँ मिलते हुए कहा।
घर में खुशियों का माहौल था, लोग बधाई देने आ रहे थे, ऐसे में आरती भी शॉपिंग करने चली गयी ...
- आरती ये क्या है, मैंने तुम्हे मना किया था न की, ये सब मत खरीदना, कितने छोटे कपड़े हैं ये ......गावों में ये सब   ...  मां ने हमेशा की तरह फिर से टोका।
- क्या तुम भी, तुम अनपढ़ की अनपढ़ ही रहोगी, ये मेरी बेटी है ..पढ़-लिख कर डॉ. बनेगी...और तुम छोटी-छोटी बातों पर.... पापा ने कहा।
अपना शौक अब पूरा नहीं करेगी तो कब करेगी.... लोग सिर्फ सवाल करते हैं...... उनसे उलझने की जरूरत नहीं है।

हर बार पापा का सानिध्य पाकर आरती अपने-आपको खुशनसीब समझती।

- पापा जब तक आगे की पढ़ाई शुरू नहीं होती मैं, पेंटिंग ( चित्रकारी ) सीख लेती हूं।
- हाँ हाँ क्यों नहीं बेटा .....छुटियाँ है अपना शौक पूरा करो ...  कम से कम अब मेरे चेहरे का भूत तो नहीं बनाएगी .....संजीव ने अपनी बेटी को हंस कर कहा।

आरती के बचपन का शौक, जीवन का नया पड़ाव और सपनों की धुन एक नई उड़ान भरने को तैयार थे

बाहरवीं के बाद आरती का दिल्ली विश्विद्यालय में दाखिला हुआ  तो सपनों को मानो पंख लग गए।

इस बार भी स्कूल में टॉप करने वाली आरती, कॉलेज में हमेशा आगे रहती, कोई दोस्त नहीं, सिर्फ पढ़ाई ..आज तक यही तो सीखा था उसने।
फिर एक दिन सब से जान- पहचान  हुई  ...  जब साल अंत में हुए पेंटिंग कम्पीटीशन में आरती ने प्रथम स्थान प्राप्त किया।

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शनिवार, 6 जनवरी 2018

स्वास्थ्य के प्रति कितने जिम्मेदार हम

     मानव जीवन की सबसे बड़ी और अनदेखी पूंजी यदि कोई है तो वह है - हमारा स्वास्थ्य ! अनदेखी इसलिए कहा , क्योंकि हम जब तक हम  बिस्तर न पकड़ लें या किसी रोग से गम्भीर रूप से ग्रसित न हो जाएं तब तक , कम से कम अपने स्वास्थ्य की चिंता तो नही ही करते हैं । हां , केवल अपने बच्चों की स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति हम जरूर अधिक जिम्मेदार होते हैं ।     
स्वास्थ्य के सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द जी ने कहा है - " तुम गीता का अध्य्यन करने के बजाए फुटवाल के जरिए स्वर्ग के अधिक निकट रहोगे " आशय यह - अपने लक्ष्य ( गोल ) के पीछे दोड़ो मगर अपने स्वास्थ्य को पीछे मत छोड़ो । कितना सही कहा है - स्वामी जी ने। इस संदर्भ में मुझे एक दृष्टांत याद आता है - एक व्यक्ति के मन में नगर सेठ कहलाने का भाव आया और उसने अपने इस विचार को अपना लक्ष्य बना लिया । दिन रात अथक परिश्रम किया और वह नगरसेठ बन भी गया । उसकी वाह वाही होने लगी और वह आदरणीय हो गया लेकिन इस अथक मेहनत के दौरान उसने अपने परिवार और स्वास्थ्य का बिलकुल भी ध्यान नही रखा । हुआ यह कि असमय ही उसका शरीर शिथिल पड़ गया और कई लाइलाज बीमारियों का शिकार होकर अंततः चल बसा। उसकी सारी दौलत भी उसके काम न आ सकी । यदि वह अपने लक्ष्य को सेहत का ध्यान रखते हुए पाता तो क्या वह असमय काल का शिकार होता ? बस अपने स्वास्थ्य के प्रति सचेत होने के लिए विवेकानन्द जी का वाक्य और यह दृष्टांत ही पर्याप्त है । समय रहते सम्हल जाएँ । जीवन के सारे उद्देश्य पूर्ण करें किन्तु अपने स्वास्थय की अनदेखी न करें क्योंकि हमारे अस्वस्थ्य होने के लिए कोई और नही हम ही जिम्मेदार होते हैं । समझना तो होगा ही इसे। 

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ब्लॉग आर्काइव

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